ख़ामोशी के अफ़साने में
शब्दोँ का दमन नही होता
शोर के मध्य शान्ति का
असर नही होता
ठीक जैसे अन्धकार हो जाता है
विलुप्त हर उषा को
सच नहीं बैठता देर तक
अन्धकार कि चादर ओढ़हे
देखी पर विश्वास है
पर विश्वास तो अदृश्य है
दरख्वास्तें हुई, पर्दे भी हटे
दरख्वास्तें हुई, पर्दे भी हटे
सच कि अंतः विजय हुई
पर एक कसक रह गई
दिल के एक कोने में , बंजर
ऐतबार कर लिया होता गर
आज कहानी कुछ और होती
हमें वक्त ने गढ़ा शर्त पर
उसके मुताबिक ढल जाने को
शायद हम वक्त को ढाल लेते
शायद हम वक्त को ढाल लेते
मुझे यह कविता पसंद आई। इस कविता के ज़रिये जो संदेश तुम हम तक पहुँचाना चाहती हो वो बहुत खूबसूरत है। हालांकि मैं ये भी जानती हूँ की सिमरन इससे भी बेहतर हिन्दी कविता लिख सकती है। लिखते रहो और ऐसे ही बेहतरी की ओर अग्रसर रहो। :)
ReplyDeleteTIME ,waqt ... it does not wait for anyone
ReplyDeletelovely poem
Bikram
wah wah...beautiful simran..
ReplyDeleteloved it....<3<3
my recent one :http://www.vanitynoapologies.com/2014/05/bourjois-rouge-edition-velvet-lipstick-velvet-02-frambourjoise-review-swatches.html
बहुत सुन्दर कोमल भाव .प्यारी रचना
ReplyDeleteशायद हम वक्त को ढाल लेते
ReplyDeleteअपने अनुसार लाख आजमाने पर
बहुत सुन्दर खूबसूरत भावों को दर्शाती सुन्दर रचना |
actually...its simple awesome... :)
ReplyDeleteछोटी सबी लोग को इस सुन्दर कविता से बहुत कुछ सिखने है!
ReplyDeleteशायद हम वक्त को ढाल लेते
अपने अनुसार लाख आजमाने पर
तो कहानी होगा हमारी अनुसार!!!
तुम तो वाक्य खूबसूरत कविता लिखी <3
Wow ... you are multi talented ... your English poems are magical, and now Hindi too? Superb.
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