रात गुज़र गई उन नज्मों को याद करते करते
अश्कों से सजाया हमने उन तरानों को जो अफसाना बन गए
एक आहट हुई , नजाकत हुई फिर चली रहनुमा सी फिज़ा
सिले होटों पे तब्दील थी दिल - ऐ - दास्तान
नादान सी शायरी थी या ख्वाबों के आज़ाद परिंदे
गुस्ताखी थी या फ़रियाद ?
जिसने नगमे - ऐ - नजाकत को महफ़िल में सजा दिया
मेरी आशिकी को लतीफा बना दिया
इतनी कशमाकश है आपके शब्दों में
दूर बैठा कोई पत्थर ना पिघल जाये
Thank you so much!
Special Words of appreciation from my dear friend Monu Awalla
इतनी नजाकत से शब्दों को लिखा मत करो
ये दिल नादान है कहीं गुस्ताखी ना हो जाये इतनी कशमाकश है आपके शब्दों में
दूर बैठा कोई पत्थर ना पिघल जाये
Thank you so much!
I'm stunned... :O
ReplyDeleteReally? :D
Deleteexcellent one... :)
ReplyDeleteI hardly write hindi poems and this time I tried urdu and so glad you liked it!
DeleteThank you !thank you ! thank you! :D