मेरी प्यारी दादी (स्वर्ण कौर)
जब चिथड़ो मे लिपटे कलाकार ,
मोटी मोटी रोटियों निगलते हैं,
तब एक प्रश्न चिन्ह उभर आता है ,
इन ईंट सी रोटियों मे क्या इतनी ऊर्जा है ?
निरंतर अगड़ित ईटों को ढोते हुए वे कलांत नहीं होते ,
हम मेवे खाने वाले मे इतने अच्छम है की एक ईंट भी उठा लें ,
तब एक आकाशवाणी मन मे होती है ,
तुम तन के केंद्रित्करण हो ,
वे मन के केंद्रित्करण हैं ,
तुम भुक्त भोगी हो ,
वो मुक्त भोगी हैं ,
तुम जीवन की सम्पूर्ण शक्ति को तन मे समोते हो ,
वे जीवन की सम्पूर्ण शक्ति को मन मे समोते हैं ,
तुम जीवन के समस्त माध्र्य को रो कर पीते हो ,
वे जीवन की समस्त कड़वाहट को प्रेम से पीते हैं ,
तुम साधन हो वो केवल साधक हैं I
आपकी सराहना के लिए धन्यवाद !
Dadiji ko mera pranam bolna, ham to unke bachhen hain, ham bhi seekhenge gahraise likhna.........! :) bahut achha kiya share kiya.
ReplyDeletedil ko choo gayi kavita
I wonder what is written on your post? I can't understand? hahaha. All I could see are just small boxes. :(
ReplyDeleteBahut hi achha aur uchit vichaar hai, tabhi to ve kalakaar hain.
ReplyDeleteCheers,
Blasphemous Aesthete
@Mohinee
ReplyDeleteBohot kuch hai seekhna sikhaana :)
Thank you so much :)
@Faye
Awwww :( Translate it!
@Anshul
Bilkul :) thank you so much..
Her blessings are with you all! :)
beautiful post. THis poem touched my heart,
ReplyDeleteexcellent write!
@संजय भास्कर
ReplyDeleteThank you so much :)