मंजिल की तलाश में बंद आँखों में सपने संजोये हैं खुली आँखों में मंजिल की तलाश लिए हम रात भर न सोये हैं ये कश्ती , ये मांझी , ये सागर के गहराई, वो साहिल का किनारा , ये कश्ती बिन मांझी के, सागर की तेज लहरों में बिन किसी सहारे के , गुन - गुनते सुरों में गिरते संभलते चलते चले हैं .. बुलंदियों को छुने निकला है बंजारा दिल अरमानो को भरे , ये लहरें जो कहती हैं ''संभल के चलो '' ये हवाएं कहती हैं ''बढ़ते चलो '' ये पंछी जो कहते हैं '' गुनगुनाते चलो'' ये बुलंद होसले कहते हैं '' छु ले अपने अरमानों का आसमान , जमी की तलाश न कर , जीतने से पहले हारे के डर से न डर